एक फोन और नेट पैक के परे
यह लेख वॉयस से है – एक श्रृंखला जहां युवा अपने अनुभव साझा करते हैं और अपने करियर की चुनौतियों और उपलब्धियों के बारे में विचार करते हैं।
क्या जीवन के लिए काफी है कि हमारे पास एक फोन हो
और उसमें नेट पैक हो?
कभी-कभी अचानक फ़ोन चलाते-चलाते मन में अत्यंत पवित्र और जायज़ सवाल उठने लगते हैं – ये मैं क्या कर रहा हूं? मेरे जीवन का मकसद क्या है? मैं अभी ऐसा क्या करूँ, जिससे मेरे मन की ये ख़लिश समाप्त हो जाये। कोई जवाब न मिलने की अवस्था में ये समाप्त हो जाता है, और फिर शुरू हो जाती है, फेसबुक और व्हाट्सएप की दुनिया की खेलमखेलियां।
एक टाइम मेरे मन में ये विचार उठा था कि, ये जो मैं कर रहा हूँ, इसका प्रभाव मेरे जीवन पर कितना गहरा होगा – जैसे अगर मैं कुछ पढ़ रहा हूँ, तो इसका प्रभाव ये हो सकता है कि जीवन के किसी पल मे जब मैं दुविधा में हूँ, वो पढ़ा याद आ जाये, और मैं शांति से मुद्दा सुलझा लूँ।
अब अगर मैं फेसबुक चला रहा हूँ और मैंने किसी के पोस्ट को लाइक कर दिया, तो ज्यादा से ज्यादा इसका प्रभाव क्या हो सकता है? शायद यही कि वो भी मेरे अगले पोस्ट को लाइक कर दे! ऐसा तो नहीं हो सकता की भारत-चीन के रिश्तों में सुधार होगा, और वहाँ की आवाम वर्षों तक चैन से रहेगी। जाहिर है इन चीजों का कोई ज्यादा से ज्यादा 10 दिन से अधिक प्रभाव नहीं रहने वाला।
कभी कभी वक़्त ऐसा आता है, जब जीवन में परिवर्तन बंद हो जाता है। ऐसा इसलिए नहीं कि आप नहीं चाहते। ऐसा इसलिए
क्योंकि आपसे हो नहीं पाता।
फोन चलाना कम करना है, सोने – उठने का समय सही करना है। कुछ पढ़ना है, खुद को खुश करने के लिए कुछ करना है। कुछ ऐसा काम करना है जिससे रात को सुकून की नींद ले पाएं। कुछ अपने सपनों के लिए करना है – कितने परिवर्तन गिनाऊँ मैं? जो आप करना तो चाहते हैं पर अफसोस हो नहीं पाता।
परिवर्तन के लिए सबसे जरूरी चीज़ है – बदलने का विचार मन में उठे तो सही, कि ये जो कर रहा हूँ वो गलत है। अगर मैं कुछ और करूँ तो जीवन ज्यादा संतुष्ट रहेगी। उसके बाद सबसे पहला परिवर्तन अपने आसपास के चीजों में करना चाहिए – कुछ ऐसी चीज सामने रखिए, जो आपको याद दिलाती रहे कि बदलाव करना है। मैं अक्सर ऐसे हालात में कुछ कविताएं पढ़ता हूं या स्टिकी नोट्स बना लेता हूँ।
जिंदगी को अपने हाथों में लेकर चलाने में जो मज़ा है वो इस तरह बिना मोटिव वाले लाइफ में नहीं है। जीवन का लक्ष्य निर्धारित होना चाहिए। मैं जीऊंगा अपनी मर्ज़ी से लेकिन वो मर्ज़ी मेरे दिमाग और मेरे मन का निर्णय होगा, परिस्थितियों का बहाव नहीं।
अभी मेरे मन में तुरंत ये सवाल उठा, कि मैं क्या कर रहा हूँ? मेरे जीवन का मकसद क्या है? मैं ऐसा अभी क्या करूँ, जिससे मेरे मन की ख़लिश समाप्त हो जाए?